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भटकते अब्र में / संजय चतुर्वेद
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कल भगत सिंह को लालू प्रसाद से आशीर्वाद माँगते देखा
चन्द्रशेखर अपनी राजनीतिक ग़लतियों पर
शाहबुद्दीन से कुछ सीख रहे थे
दुःस्वप्न ही रहा होगा
लोगों और तादाद से ज़्यादा इन्क़लाबी कोई नहीं रह पाता
इतिहास भी नहीं
जिस उत्साह, साधन और मदद से
आमाल
राह-ए-तलब में चल पड़े हैं
बाज़ औक़ात ये मंज़र भी अयां हो लेगा
हम भी जिस राह से बहकें ये गुज़र देखेंगे
और पता भी नहीं चलेगा
नई नस्ल में इस दुर्विचार का बीज बो दिआ
कि अम्मा
दादाजी जिन्हें नायक महानायक कहते हैं
क्या वे भी ऐसे ही थे ?
2016