भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भय / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
Kavita Kosh से
बेंगे ने
बेंगनी सें कहलकै
आदमी
अपनोॅ आदमीयत छोइड़ रहलै
तबेॅ आदमी केॅ
आदमी नै
कोनो दूसरो नाम सें एक समय ऐत्तेॅ पुकारल जैतै
आदमी शब्द लुप्त होय जैतै।