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भय और भूख / अनुराधा ओस
Kavita Kosh से
भय और भूख
दुःख और मौन
जब नहीं बदल पाते डर में
तब वह बदल जाते हैं
साहस में
और पांव चल पड़ते हैं
उस ओर
जहाँ से परिवर्तित हो जाता है
भय
साहस में
जब भी और भूख और भय
हमें छलते हैं
तब हम भूख और भय की परिभाषा
समझने को निकल पड़तें हैं
वहाँ जहाँ कभी पहुँचे थे बुद्ध
हमारी सभ्यता हमें धकेल
देती हैं एकांत में
भूख और भय की परिभाषा
जानने के लिए॥