गीत गाये सुवा-सल्हई, रे भईया
भल करइया के होय भलई।
झूठ-लबारी, चुगली चोरी-
के एक दिन खुले कलई, रे भईया...
सतवादी के रद्दा एके ठन,
लबरा के दस दुवारी।
तभो कभू बलकय नहीं
लबरा अउ लबारी॥
घड़ी-पल छिन के चारेच दिन के
लबरा के मुंह मलई, रे भईया...
सत् ह कभू हारय नहीं,
भले होवय हलाकान।
सत् धरती सत् अगास
सत् चंदा-सुरुज समान॥
सत् के आगू, सत् के पाछू
असत् के कांपे पलई रे भईया...
नंदिया न पीए अपन नीर
रुखवा न खाय अपन फर।
जग-जिनगी बर झमाझम
बरसे करिया-करिया बादर॥
दुख सहिके, जिनगी थहिके
करम ले भागे करलई रे भईया...