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भवसागर लोटा लगता है / वैभव भारतीय
Kavita Kosh से
एक तुम्हारा दुःख मिलने से
कितने दुःख बे-वजन हो गये
सब कुछ अब छोटा लगता है
भवसागर लोटा लगता है।
सब बातें है लाचार हुई
कुछ भी ना हल कर पाती हैं
बस मौन बची इक आशा है
जो हर पल बढ़ती जाती है।
तेरी अंगड़ाई का क़ायल
ये अंगड़ाई भी सह लूँगा
फिर कभी शिकायत ना होगी
सब कुछ मन में ही कह लूँगा।