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भविष्य / अरविन्द यादव
Kavita Kosh से
जब तक खड़ा है
चीथड़ों में लिपटा बचपन
हाथ फैलाकर
जब तक हैं उसके हाथों में
भारी भरकम औजार
खिलौनों की जगह
जब तक हैं उसकी पीठ पर
फटी पुरानीं बोरियाँ
और उनमें पड़े क्वाटर
तब तक कौन कह सकता है
कि उज्ज्वल है
भारत के भविष्य का भविष्य