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भविष्य की खातिर / नवनीत पाण्डे
Kavita Kosh से
तुम व्यर्थ ही
आशान्वित हो
यह बचा हुआ हिस्सा
भाए नहीं तो क्या
तुम्हें नहीं दूंगा
रखूंगा संभाल कर
अपने भविष्य की खातिर