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भविष्य के निर्माताओं / महेन्द्र भटनागर

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जिन सपनों को साकार करोगे तुम

उन पर मुझको विश्वास बड़ा,

मैं देख रहा हूँ

क़दम-क़दम पर आज तुम्हारे

स्वागत को युग का इन्सान खड़ा !

जिसके फ़ौलादी हाथों में

हँसते फूलों की खुशबू वाली माला है,

जिसने जीवन की सारी

जड़ता और निराशा का

वारा-न्यारा कर डाला है !

वह माला वह इनसान

तुम्हारे उर पर डालेगा;

क्योंकि तुम्हारा वक्षस्थल

जन-जन की पीड़ा से बोझिल है,

क्योंकि तुम्हारे फ़ौलादी तन का

मख़मल जैसा मन

युग-व्यापी क्रन्दन से

हो-हो उठता चंचल है !

तुम ही हो जो

इन फूलों की क़ीमत समझोगे,

फिर सारी दुनिया में

हँसते फूलों का उपवन

नभ के नीचे लहराएगा !

मानव फूलों को प्यार करेगा,

अपनी 'श्रद्धा' का शृंगार करेगा,

बच्चों को चूमेगा,

उनके साथ रोज़

हरे लॉन पर 'घोड़ा-घोड़ा' खेलेगा !

नयनों में आँसू तो आएँगे

पर, वे बेहद मीठे होंगे !

मरघट की आग जलेगी यों ही

पर, उसमें न किसी के

अरमान अधूरे होंगे !

जैसे अब मिलना दुर्लभ है

'ईश' जगत में

वैसे ही तब भी होगा,

पर, हमको-तुमको

(सच मानो !)

उसकी इतनी चिन्ता ना होगी !

उसका और हमारा अन्तर

निश्चय ही मिट जाएगा,

जिस दिन मानव का सपना

सच हो जाएगा !

1953