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भविस के कामना / मथुरा प्रसाद 'नवीन'

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सीताराम सीताराम!
हे बबुआ,
तनी सनी तो उसको
घुसकुनियाँ
काट के भी तो घुसको
शांति अगर चाहऽ हा पहिने
दुस्मन के पहचानो
जान बूझ के
नै अपने से
घर में कुइयाँ खानो
अपने घर में
कुइयाँ रख के
केकर खाई भरवा?
शांति अउ मित्रता
तों बढ़ा रहला है।
लेकिन अपने घर में-
नीम पर करैला चढ़ा रहला हे
हम्मर कहना हो
कि शांति से अगर रहना हो
तब धरम
अउ जात के आड़ नै ला
माथा पर
ई फूट के पहाड़ नै ला
जेकरा हाथ में थैला हो
ओकर जात अलग हो,
जेकर हाथ में घैला हो,
ओकर जात अलग हो
अलग हो
ओकर महल
अउ तोहर पलानी
पलानी में
रहै बाला के जात की?
कमियाँ ले दिन अउ रात की?
सूरज-गरीब के
माथा पर उगऽ हे
चाँद
अमीर के खाता पर उगऽ हे
चाँदनी रात के
सुहागनी छटा
देख के तों नै छटपटा
नाचो दहो
चकवा चकोर के,
नाचो दहो
डाकू अउ चोर के
केतना दिन
केतना दिन
बर्तमान के
धकियैते ई भूत
भविष्य में रहतै नै
जात धरम छूत
अपन भविष्य के कामना करो
दुख थोड़े दिन हो सामना करो।