भाई रै... मैं मरणा चाहूं लड़कै
बेकारी भूख गरीबी गुलामी छाती के मैं रड़कै
अत्याचार सहन नहीं होता, अन्याय से नहीं हो समझौता
वो माणस का बीज नहीं जो मरै बुरी तरह सड़कै
बच्चै बूढ़े लावारिस रोवें, बेघर लाखों सड़क पै सोवैं
जहर खाकै मरैं कहीं पै, कहीं मरै कूवे मैं पड़कै
अबलायें भूखी लाज बेच रही, मां बेट्या नै आज बेच रही
दुखी दीनों का रोणा जिगर म्हं, बणकै बिजळी कड़कै
शहीदों नै कहा बागी हैं हम, नहीं मरणे का मुनिश्वर को गम
भगत सिंह नै यही बात कही, फांसी के ऊपर चढ़कै