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भाग 10 / हम्मीर हठ / ग्वाल कवि

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मोल्हन उवाच, दोहा

अब मोल्हन की बात कों, टारो मत नरनाह।
पातसाह के कोप तें, को करि सकै पनाह॥93॥

छन्द

असी लाख हिंदू भरैं दंड जाके।
सभी भूप हाजिर रहैं पास ताके॥
बनी चार रँग की सजी सैन वाकैं।
बली बीर बाँके लड़त में न थाकैं॥94॥

बचोगे कहाँ भाजि वातें धरा पै।
पहुँचने के लच्छिन नहीं है जरा पै॥
जिधर फौज उसकी चलै है सुभावं।
तिधर पेसतर ही करै काल धावं॥95॥

तपै भानु सो तेज जाको महा है।
छिपै भानु रज से चलै वो जहाँ है॥
न दीजौ हमैं दोष कबहूँ पिछारी।
रखौ याद बातें सबै ये हमारी॥96॥

भूपति उवाच

कहै फेर भूपति महा तू नदाना।
अभी तैंने मुझको नहीं खूब जाना॥
करै है बड़ाई इती तू जिसी की।
सभी फौज मारौं पलक मैं तिसी की॥97॥

जुटे जो हैं मोतें न जीते बचे हैं।
किते हार मुंडों के सिव ने रचे हैं॥
अभी मार डारौ दबरिआय उसकों।
कहूँ और क्या-क्या अरे बैन तुझकों॥98॥

डुलै ब्रह्म आसन, डुलै इंद्र आसन।
डुलै रुद्र ताड़ी, डुलै विष्नु सासन॥
डुलै धु्रव कभी भी, चालै सुमेरं।
दरिद्री कहूँ होइ जावै कुबेरं॥99॥

तऊ वाक मेरे न टालै टलैंगे।
यही जान मन में न हाले हलैंगे॥
वहाँ जाय कहना इती बात मेरी।
दिखाऊँ तमासा जुपै बात फेरी॥100॥