भाग 5 / हम्मीर हठ / ग्वाल कवि
दोहा
प्रात होत बैठे तखत, बादसाह रनवास।
जुरि आईं बेगम सबै, करैं बड़ाई रास॥41॥
करैं तसद्दुक साह सिर, रुपये मौहर मुक्त।
मरहट्टी करि बारनैं, हँसी तहाँ जु अजुक्त॥42॥
मरहट्टी को हास लखि, कही साह भरि जोर।
कौन बात तैं तू हँसी, तजिकै मो डर घोर॥43॥
तबै जोर कर कों कही, मरहट्टी यह अर्ज।
साधारन ही मैं हँसी, करिये आप न तर्ज॥44॥
फेर साह ने अस कही, कहि दै साँची बात।
नाहीं तो करि डारिहौं, तो तन को अब घात॥45॥
तब मरहट्टी पग परी, देहु जान बकसीस।
तब साँची मैं कहूँगी, काल्हि अलग अवनीस॥46॥
करि करार ऐसे तहाँ, आई अपने गेह।
बुलवायो खोजा गुपत, लिख्यो पत्र करि नेह॥47॥
महिमा मीर मंगोल जु, भाजि जाहु कहुँ अंत।
काल्हि कहूँगी बात सब, बादसाह रिसवंत॥48॥
यों लिखि खोजा को दियो, जा गोसे में देव।
महिमा मीर मंगोल, कों, समुझि परै सब भेव॥49॥
कवित्त
खोजा खत लैके, जाय मीर के दियो है हाथ,
बाँचत ही मीर कही, जीवन की आस ना।
खोजा को इनाम दियो, काम कों सलाम करि,
भूल्यो इतमाम, तजी दुनिया की वासना।
कहाँ चलौं, कैसे चलौं, कापै चलौं, कौन राखै,
ऐसो कौंन भूप जो पै साह को है दास ना।
एक श्री हम्मीर देव छत्री चहुआन सुन्यो,
सु रनथंभौर सोहै, दूसरो मवास ना॥50॥
करिकै बिचार चल्यौ अस्व पै सवार ह्वैकै,
जहाँ श्री हम्मीरदेव बैठे राजधानी में।
पहुँचौ किले में, चोबदार द्वार भेजी अर्ज,
सुनिकै बुलायो, गयो सभा वा सयानी में।
करिकै सलाम, हाथ जोरि, माथ नायौ पुनि,
नज़र दिखाई साथ, बोल मृदु बानी में।
भूप ने इसारा कियौ, हाथ तें, ठहर जाव,
सुनेंगे अरज पाछैं, थाकी ही जुबानी में॥51॥