भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भाग्य रेखा / नरेश अग्रवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नीले आकाश के बीच
बादलों ने खींची है
मेरी भाग्य रेखा
बादलों से झॉंकते हैं
टिमटिमाते तारे
जिनमें बसी हैं
मेरी शुभ और अशुभ घडिय़ॉं
तिनका हूं अभी मैं
हवा में उड़ता हुआ
धूल हूं पृथ्वी की
क्या पता कल बन जाऊँ
माथे का तिलक किसी का
फिर भी तो ऐ मिट्टी
तेरी ही अंश हूं
न जाने कब
पॉंव तले रौंद दिया जाऊँ ।