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भारत से आए / सन्ध्या भग्गू
Kavita Kosh से
बाप दादा खूब कमाए
इसी मिट्टी में समाए
इस बात को हम क्यों भूल जाएँ
काट के जंगल शहर बनाए
चुटा-चूटि बहुत सताए
घाम बरखा से जिया घबराए
इस बात को हम क्यों भूल जाएँ
कॉफी-ककाव खूब लगाए
मसकिटा गोजर काट खाए
टोपी लगाए मंझा आँख दिखाए
इस बात को हम क्यों भूल जाएँ
सब्बल चलाकर डाम बनाए
पत्नी लाए परिवार बढ़ाए
चार द्विन्नी दिन में कमाए
इस बात को हम क्यों भूल जाएँ।