भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भालू जी / दीनदयाल शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ढोलक बाजे ढम ढम ढम
नाचे भालू जी छम छम

दो पैरों पर खड़ा हो गया
ता-ता थैया ता-तिकड़म

दरख़्त पर चढ़ जाए उल्टा
खा के शहद ही लेता दम

लेट जाए धरती पर लटपट
आए न इसको कभी शरम

घने बाल ज्यों ओढ़ा कम्बल
सरदी का इसको ना ग़म.....