भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भावी / शब्द प्रकाश / धरनीदास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भावी सबके संग है, भावी लखै न कोय।
धरनी समय-प्रसगते, भावी परगत होय॥1॥

धरनी भावी क्यों मिटै, विधिना लिखा जो अंक।
भुगुति चलैगो मानवा, राजा होउ कि रंग॥2॥

कर्त्ता की करतूति जत, भावी कहियत सोय।
धरनी देखो समुझि करि, वाते और न कोय॥3॥

धरनी भावी सो कही, जो कर्त्ताकी मौज।
घरमें रहे कि बाहरे, तनहा रहे कि फौज॥4॥

दुख सुख विधि ने जो लिखे, यश अपयश जग माहिँ।
धरनी धीरजही बनै, शोच किये कछु नाहिँ॥5॥

जब लगि भावी प्रबल है, निशिदिन डोलै साथ।
धरनी भावी भय नहीं, कृपावन्त रघुनाथ॥6॥

धरनी कर्त्ताकी कला, परै न काहू जानि।
ताते जब जैसी बनै, शिर पर लीजै मानि॥7॥