भावों की कीमत / साधना जोशी
अगर भाव न होते हृदय में,
तो सारा जगसूना होता ।
न माँ की ममता होती,
और न रिष्ते-नाते होते ।
दया धर्म भी छिप जाते,
न कोई अपना कहलाता ।
घर द्वार का अस्तित्व भी,
धरती पर कहीं न दिखता ।
अगर भाव न होते हृदय में,
तो सारा जगसूना होता ।
बहनों का कहीं प्यार होता,
भाई का दुलार न होता ।
कोई मित्र न होता दुनिया में,
सोचो कैसा ये जग होता ।
अगर भाव न होते हृदय में,
तो सारा जगसूना होता ।
मान मर्यादा नैतिक मूल्यों से,
धरती खाली होती ।
न देष भक्त, न वीर-जवान,
बेटा कोई न पिता होता ।
अगर भाव न होते हृदय में,
तो सारा जगसूना होता ।
आँख में आंषु नहीं होते,
किसी के दुःख मे न दिल रोता ।
मुस्कान को कहां से लाते हम,
मानव पत्थर जैसा होता ।
अगर भाव न होते हृदय में,
तो सारा जगसूना होता ।
कीमत पहचानों भावों की,
इसको विकसित करना है ।
इसीलिए समाज के साथ में,
हमको भी घुलना मिलना है ।
अगर भाव न होते हृदय में,
तो सारा जगसूना होता ।