भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भाषा-माध्यम / अज्ञेय
Kavita Kosh से
एक अहंकार है जिस में मैं रहता हूँ
जिस में (और जिसे!) मैं कहता हूँ
कि यह मेरा अनुभव है
जो मेरा है, मेरा भोगा है, मेरा जिया है :
और एक इस सच का स्वीकार है
कि यह जो ज्ञान भी है
इस की पहचान अभी
माध्यम एक मुहावरा है जो तुम्हारा दिया है!
नयी दिल्ली, 8 मई, 1980