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भाषा / ईहातीत क्षण / मृदुल कीर्ति
Kavita Kosh से
समग्र अंतस का मूल
व्यक्त और मुखर
करने की सामर्थ्य
किसी माध्यम में नहीं,
किसी भाषा में नहीं.
भाषा ध्वन्यात्मक बोध है
भाषा मात्र ध्वनित करती है.
भाषा नाद तत्व है.
सर्वग्य , सम्पूर्ण व्यक्त कर पाना
नाद की सीमा में कहाँ ?
भाषा भावः के आर पार होकर
समक्ष नहीं हो सकती ,
केवल समकक्ष हो सकती है.
सच तो यह है
कि
जब -जब भी हम गहनतम होते हैं,
शब्द न्यूनतम होते हैं
मौन ही मुखर होते हैं.
हमारा मुखरित मौन
दृष्टि से ध्वनित होता है.
भाषा का यह अपूर्व बोध
और मौन मुखर संवाद ,
व्याकरण नहीं ,
अव्याकरण है.
ध्वनि परमाणुओं से विलग,
मौन मुखरित संवाद ,किंतु सलग,
करने में पूर्ण सक्षम और समर्थ ,
भाषा जो बिना भाषा के भाषित हो,
यही उसका सात्विक और समर्थ अर्थ है.
यही सम्पूर्ण भाषा है.