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भाषा / महेश वर्मा
Kavita Kosh से
मैं सपनी धूल हटाता हूँ
कि देखो वहाँ पड़े हुए हैं कुछ शब्द ।
मेरे होने की संकेत-लिपि से बेहतर,
विकसित भाषा के शब्द ये--
शायद इनसे लिखा जा सके निःशब्द ।