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भाषा जब / सुनीता जैन

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भाषा जब
मुझे उमड़ कर
नहला-सा देती है-

भीतर दुखती
जाने कब की रग,
सहला-सा
देती है

कभी निमोली
कभी फूल-सा, कुछ
कहला-सा
देती है

एक क्षितिज बिम्बों से भर
कहीं गगन पे,
फैला-सा
देती है