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भाषा में बड़े हुए लड़के / शचीन्द्र आर्य
Kavita Kosh से
जिस भाषा में
लोग बस और लड़की के पीछे न भागने की हिदायतें देते हों,
हमें उन्हें क्या समझना चाहिए?
उन्होंने लड़कियों को भी बस बना दिया।
जिस तरह सड़कों पर बेतहाशा बसें दौड़ रही हैं,
वैसे ही एक लड़की के चले जाने पर दूसरी लड़की आ जाने की कल्पना है।
हम भी इसी भाषा में बड़े हुए लड़के हैं,
हमें पता है, तपती हुई दोपहर में बस छोड़ देने का मतलब।