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भीगती शब चाँद सन्नाटा सितारे सब्ज़ाज़ार / सिया सचदेव

भीगती शब.चाँद सन्नाटा सितारे सब्ज़ाज़ार
इक शजर,इक साया,न उम्मीदी,आँखे अश्कबार

खुद से लड़ती तेज़ तर मौजे,नदी बिफरी हुई
इक शिकस्ता नाँव जिसका बादबाँ है तार तार

सोच में डूबी हुई,खोयी हुई,हर शय उदास
ऐसे आलम में रहे किस दिल को खुद पे इख्तियार

बे अमाँ बेसब्र नग्में, बेसदा बे हर्फ़ लय
एक कोने में टिका,नाराज़ खुद से इक सितार

एक प्याली चाय सुब्ह ए हिज्र ख़ुद से गुफ़्तगू
ज़ेहन में तूफ़ान चलती आँधियाँ गर्द ओ गुबार

कौन दे बेताब जज़्बों को नवद ए सुब्ह ए नौ
आस का बोसीदा दामन भी हुआ अब तार तार

दर्द का बादल है छाया वादी ए दिल पर मेरे
मेरी आँखों से टपकते अश्क हैं या आबशार

जी में आता है ख़मोशी ओढ़ कर सो जाईये
बोलना ख़ुद का भी गुज़रे है सिया को नागवार