भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भीड़ / उमा शंकर सिंह परमार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वह अकेला
ख़ामोशी ओढ़े गुमसुम
खो गया भीड़ मे
 
राजपथ, जनपथ, जन्तर-मन्तर
पट गया भीड़ से
 
न विवाद न संवाद
न विनाश न आबाद


चिकटा फटा काँच पहने
अधनंगा, गुमशुदा ’रामराज’
कराहता दिखा भीड़ में