भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भीतर का दीया-एक / मुकेश मानस

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


एक अनन्त रेगिस्तान में
तपना पड़ता है

एक अथाह तिमिर सागर
लाँघना पड़ता है

एक पाषाणी सभ्यता में
पिसना पड़ता है

अगर इंसान भूल जाये
अपने भीतर का दीया जलाना
2008