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भीतर की बात / सौरभ
Kavita Kosh से
बाहरी स्वतन्त्रता तो मिल चुकी अब
आओ भीतर की कुछ बात करें
भाव-बोध का धर्म-बोध का
दीप जलाएँ
इन्सानियत को अब उकसाएँ
आओ कर्तव्यबोध से भर जाएँ
बुराई की फसल जलाएँ
बदनीयत न कोई होवे
नेकचलन की शपथ खाएँ
इस धरती पर स्वर्ग बनाएँ
खुद ही ज्ञान का दीप बन
औरों को रोशनी दिखाएँ
अन्धियारों को दूर भगाएँ
निष्काम भाव से कर्म कर अब
भगवान कृष्ण को रिझाएँ
द्रौपदी न रहे कोई अब
जिसकी हम लाज बचाएँ।