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भुट्टा / चन्दन सिंह
Kavita Kosh से
भुट्टे
मुझे बेहद पसन्द हैं
सड़क किनारे
चूल्हे की आँच पर सिंकते भुट्टे
जीभ पकड़कर खींच लेते हैं मुझे अपने पास
हाथों में कितनी गर्मजोशी से आते हैं वे
अपने ही पत्तलों पर
नमक
हरी मिर्च
स्वाद की काली धारियाँ
और ख़ुशबुओं के अपने प्रभा-मण्डल के साथ
कोई-कोई भुट्टा
तो इतना खिच्चा
कि दोनों को अँगुलियों से छुड़ाते हुए लगता है
मानो छू रहा हूँ
किसान की देह पर पसीने की बून्दें
भुट्टा खाने के बाद
नियम से नहीं पीता हूँ पानी
नियम से तोड़कर उसे सूँघता हूँ
पता नहीं किसने बताए ये नियम और इनके क्या फ़ायदे हैं
पर मेरी आदत से
कुछ दोस्त परेशान रहते हैं
मुझे समझाते हैं
कि इन चूल्हों का कोयला
मसानघाट से
लाया हुआ होता है
पर मैं अवश
खा ही लेता हूँ भुट्टे
सड़क किनारे
औघड़ की तरह ।