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भूख / नीलकान्त सइकिया / शिव किशोर तिवारी

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क्या खिलाऊँगी तुझे सेनीमाइ?
इसलिए नदी की ओर ठेलती हूँ, जा।
नदी में खाना मिलेगा, माँ ?
मछली मिले, मेढक मिले, जो मिले खा,
कुछ न मिले तो पानी पी।

पानी में मुझे कहानी कौन सुनाएगा, माँ?
जलपरी सुनाएगी,
सोने की नाव में बिठाकर सात समुन्दर दिखाएगी
यहाँ तख्ती है न क़िताब
नदी में मैं स्कूल जाऊँगी न, माँ?

जलपरी ला देगी,
तेरी किताबें होंगी, स्कूल होगा,
पढ़-लिखकर बड़मनई बनेगी तू।
यहाँ तुझे क्या खिलाऊँगी, सेनीमाइ?
कई दिन से घर में कुछ भी नहीं है,
ज़मीन साथ नहीं देती तो पानी के पास जा,
पानी में कुछ ढूँढ़कर खा।

(मोरीगाँव जिले में अभाव और भूख की जो घटनाएँ घटीं, वे फिर न घटें इस कामना के साथ)

मूल असमिया से कविता का अनुवाद : शिव किशोर तिवारी

लीजिए, अब पढ़िए, मूल असमिया में यही कविता
ভোক
-- নীলকান্ত শইকীয়া
তোক মই কি খুৱাম চেনীমাই
দলিয়াই দিছো নৈলৈ যা
নৈত মই ভাত পামনে মা
মাছ পাৱ বেং পাৱ যি পাৱ খাবি
একো নেপালে পানী খাবি
পানীত মোক কোনে সাধু কব মা
জলকোঁৱৰে সাধু ক'ব
সোণৰ নাৱত উঠাই সাত সমূদ্ৰ দেখুৱাব
ইয়াত কিতাপ নাই ফলি নাই
নৈত মই স্কুললৈ যামনে মা
জলকুঁৱৰীয়ে আনি দিব
 কিতাপ পাবি স্কুল পাবি
পঢ়ি শুনি ডাঙৰ মানুহ হ'বি
ইয়াত তোক কি খুৱাম চেনীমাই
কেইবাদিনো ধৰি ঘৰত একো এটা নাই
মাটিয়ে নুশুজিলে পানীলৈ যা ‌
পানীতে কিবা বিচাৰি খা ।
(মৰিগাৱঁৰ অভাৱ আৰু ভোকে ঘটোৱা ঘটনাটোৰ দৰে ঘটনা পুনৰ নঘটাৰ কামনাৰে।)