भूमा निष्ठावंत / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
देव-दानवक दलमे चलइछ युग - युग समर अनन्त
अंधकार - ज्योतिक बिच तनइछ अहनिस द्वन्द्व तुरन्त
सत्-असत्क संघर्ष निरन्तर, धर्म अधर्म भिड़न्त
होइछ क्यौ अवतरित भूमि पर भूमा निष्ठावन्त।।1।।
राम-कृष्ण वा दया-विवेकक रूप-गुणक अनुरूप
सिद्ध-बुद्ध वा तिलक-सुभाषक भाषा - भाव अनूप
शंकर - रामानुजक दर्शनो, शिवा - प्रतापक शक्ति
चाणक्यक चतुरंत राष्ट्र निर्माणक प्रखर प्रसक्ति।।2।।
चन्द्रगुप्तकेर कर्मठ तारुण्यक प्रचण्ड हुंकार
मुट्ठी भरि हड्डीमे ज्वालामुखीक तप्तोद्गार
व्यक्ति समाज समर्थ परस्पर, अर्थ धर्म विनियुक्त
करइत छथि युगधर्म विश्वहित राष्ट्रपक्ष अनुयुक्त।।3।।
कूट - कपटकेर साधनसँ नहि होय साध्य सत् सिद्ध
रक्त क्रान्तिसँ लोकतन्त्रकेर आराधना विरुद्ध
चीर - हरण दु्रपदाक मूल विपदाक बुझाय उदन्त!
खंड अपूर्ण, अखण्ड भारतक पर्वोद्योग तुरन्त।।4।।
व्रज- रजकेर मणि पूत महाभारत रचनामे व्यग्र
धर्मराज हित कयल शान्ति - अनुशासन पर्व समग्र
राष्ट्र पार्थ-सारथी कर्म क्षेत्रक पथ कयल उदात्त
कत वलिदान चढ़ल वेदीपर तखनहि उदित प्रभात।।5।।
व्याध वाणसँ बेधल जाइछ युग - युग माथुर कृष्ण
किन्तु हुनक रणगीतेँ उर बल प्रेरित प्राण सतृष्ण
‘क्लैव्यं मा गम’ ‘सतत अनुस्मर युध्य च’ शुभ संदेश
कर्मयोग विनियोग राष्ट्रहित जयतु स्वधर्म स्वदेश।।6।।
कते भगत इनक्लाबी’ कते सुभाष हिन्द जय भाषी
लौह पुरुष कत मानवता - एकात्मवाद विश्वासी
सर्वोदयी भावना भावित जय भावेक प्रयासी
प्रियदर्शिनी अखण्ड देश हित प्राणार्पण अभ्यासी।
तिलतिल दय सिनेह हृदयक जनि ज्वालित जीवन-बाती
युग धरि ज्वलित प्रदीप शिखामे द्योतित देशक थाती
आलोकित देहली मातृमंदिरक जनिक बल हंत
हो पुनि-पुनि अवतरित भूमि पर भूमा निष्ठावंत।।8।।