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भूल / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
					
										
					
					खा बोकरी
भूखी आंख्यां
आखी उमर
धोखो,
कठै पड़ी ही
कोरै
रंग-रूप
चटक मटक में
हेत री सौरम !
सगळा हा 
कागजी फूल
आई समझ में भूल
सिंझ्या ढळ्यां,
जद बै रया
बिगस्योड़ा
बिंयां रा बिंयां !
 
	
	

