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भूल न जाना / मदनगोपाल सिंहल

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अकसर बालक सड़कों पर चलती गाड़ी के,
पीछे भागकर पायदान पर चढ़ जाते हैं।
किंतु अगर साईस जान लेता है उनको,
तो फिर उसके हंटर की चोटें खाते हैं।
बैठे-बैठे ही जो दूर चले भी जाते,
तो फिर वापिस आते-आते ही थक जाते।
इसीलिए कहता हूँ तुमसे, मेरे मुन्नू!
गाड़ी के पीछे चढ़ चड्ढी कभी न खाना।
बात हमारी भूल न जाना!

शहरों की सड़कों पर अकसर घोड़ा-गाड़ी
मोटर, ताँगे और साइकिल आती-जातीं।
चौराहे पर खड़ा सिपाही पथ दिखलाता,
फिर भी पैदल राहगीर से टकरा जातीं।
ज़रा चूकते ही तुम भी चोटें खाओगे,
ताँगे या मोटर के नीचे आ जाओगे।
इसीलिए कहता हूँ तुमसे, मेरे मुन्नू!
खुली सड़क पर आँख मूँद मत चलते जाना।
बात हमारी भूल न जाना!

केले का छिलका ऐसा होता है जिस पर,
पथ में जाते अगर किसी का पग पड़ जाता!
तो वह वहीं सड़क के ऊपर भला आदमी,
चारों खाने चित गिर जाता, चक्कर खाता।
हो सकता है, अगर तुम्हारा ही पड़ जाए-
उस छिलके पर और तुम्हें ही रोना आए।
इसीलिए कहता हूँ तुमसे, मेरे मुन्नू!
केले खाकर पथ पर छिलके नहीं गिराना।
बात हमारी भूल न जाना!

अकसर बच्चे अपने घर की या पड़ोस की,
सबसे ऊँची छत पर चढ़कर पतंग उड़ाते।
पेंच लड़ाने में जब आगे-पीछे होते,
जरा ध्यान बंटता तो झट नीचे गिर जाते।
सर फट जाता अस्पताल में पड़ चिल्लाते।
लगती चोट और लूले-लँगड़े हो आते।
इसीलिए कहता हूँ तुमसे, मेरे मुन्नू!
बहुत बुरा है ऊँचे चढ़कर पतंग उड़ाना!
बात हमारी भूल न जाना!