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भूल पाए न तुझे आज भी रोने वाले / अजय सहाब
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भूल पाए न तुझे आज भी रोने वाले
तू कहाँ है मेरी आँखों को भिगोने वाले ?
हम किसी ग़ैर के हो जायें ये मुमकिन ही नहीं
और तुम तो कभी अपने नहीं होने वाले
सोचते हैं कि कहाँ जा के तलाशें उनको ?
हमको कुछ दोस्त मिले थे कभी ,खोने वाले
रेत के जैसा है अब तो ये मुक़द्दर मेरा
ख़ुद बिखर जाएंगे अब मुझको पिरोने वाले
दर्द और अश्क ज़माने में अज़ल से हैं वही
सिर्फ़ बदले हैं हर इक दौर में रोने वाले
पेड़ का साया तो होता नहीं खुद की खातिर
फ़स्ल अपनी कभी पाते नहीं बोने वाले
दर्द ग़ैरों का भला कौन उठाता है 'सहाब'
सब यहाँ खुद की सलीबों को हैं ढोने वाले