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भूलऽ हमर भूल / राम सिंहासन सिंह
Kavita Kosh से
बिनती हौ तू, भूलऽ हमर भूल!
अब तक रहली डाल सींचते
देखली भीतर कभी न सिंचते
रहल प्रान के मधुर रिसते
पात-पात सूख रहल हे छूटल जबसे मूल!
बिनती हौ तू, भूलऽ हमर भूल!!
जगहे-जगहे धोखा खयली
अनगिन फेरा देके अयली
अप्पन सब कुछ यहीं गवयली
मन के सब समपत हम खोके फाँक रहल ही धूल!
बिनती हौ तू, भूलऽ हमर भूल!!
सान्ति हृदय में तनिक न रहलऽ
मिलल न जे भी मनुआ चहलइ
स्वार्थ-अगिन में हरदम दहलई
तू ही आबऽ पार लगाबऽ कर दऽ सब अनुकूल!
बिनती हौ तू, भूलऽ हमर भूल!!
रात-दिवस के पंख पसारे,
काल खड़ा हो साँझ-सकारे
नाव लगाबऽ नदी किनारे
चढ़ा रहल ही तोहर पद पर अप्पन जीवन-फूल!
बिनती हौ तू, भूलऽ हमर भूल!!