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भूला हुआ था आज तलक / शमशेर बहादुर सिंह

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भूला हुआ था आज तलक अपने घर को मैं
क्या जाने चल दिया था कहाँ के सफ़र को मैं

तुम मुस्कुरा रहे थे मुझे देख-देख कर
अपनी समझ रहा था हरेक की नज़र को मैं

गर्दिश से उन निगाहों को कुछ होश आ गया
दुशमन समझ रहा था ख़ुद अपनी नज़र को मैं

ऎसे भी मोड़ आए हैं चुपचाप बार-बार
तकता था राहबर मुझे और राहबर को मैं

'शमशेर' और कुछ नहीं दुनिया जहान में
इक दिल है, ढूंढता हूँ, उसी बेख़बर को मैं