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भेड़िया और मेमना / मोनिका कुमार / ज़्बीग्न्येव हेर्बेर्त

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ये पकड़ा — भेड़िया बोला और जम्हाई ली। मेमने ने अपनी पनियल आँखें भेड़िये की तरफ घुमाई — क्या तुम मुझे खाना चाहते हो? क्या यह इतना ज़रूरी है ?

— मुझे दुःख है लेकिन हाँ, मुझे खाना होगा। परियों वाली कहानियों में ऐसा ही होता है। एक बार की बात है कि एक शरारती मेमना आवारागर्दी करते हुए अपनी माँ से बिछुड़ गया। जंगल में उसका सामना भारी भरकम दुष्ट भेड़िये से हुआ और. . .

— माफ़ करना, यह जंगल नहीं है। यह तो मेरे मालिक का आँगन है। मैं अपनी माँ से भी बिछड़ा हुआ नहीं हूँ। मैं अनाथ हूँ। मेरी माँ को भी एक भेड़िये ने खा लिया था।

— कोई बात नहीं। तुम्हारे मरने के बाद आध्यात्मिक साहित्य लिखने वाले लेखक तुम्हारा ख्याल रखेंगे। वे कहानी की रूप रेखा, उद्देश्य और उस में निहित उपदेश तय कर लेंगे। मेरे बारे में बुरा मत सोचो। तुम्हें अंदाज़ा नहीं कि बुरा भेड़िया बनना कितनी बेहूदा बात है। अगर हमें ईसप<ref>प्राचीन एथेन्स के नीतिकथाकार</ref> का ख्याल न होता तो हम दोनों अपनी पिछली टांगों के बल बैठ कर सूर्यास्त निहार रहे होते। ऐसा करने से मुझे मज़ा आता है।

हाँ, प्यारे बच्चो। भेड़िये ने नन्हें मेमने को खा लिया और अपने होंठ चाट लिए। तुम भेड़िये के पीछे मत लगना। किसी नीति को सिद्ध करने के लिए अपनी कुर्बानी मत देना।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : मोनिका कुमार

शब्दार्थ
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