भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भैरवी / माधव शुक्ल
Kavita Kosh से
जाग-जाग उठ हिन्द बावरे, अब हो गया सवेरा!
चोरों ने गफ़लत में पाकर, लूट लिया घर तेरा!
भाई, अब हो गया सवेरा।।
ऐसा सोया किस्मत फूटी, सदियाँ बीतीं नींद न टूटी।
मौत देख शरमाई तुझको, किन पापों ने घेरा!
भाई, अब हो गया सवेरा।।
ताज, तख़्त लुट गया खजाना, धन रत्नों से भरा पुराना।
लुटा जा रहा दाना दाना, सर पर खड़ा लुटेरा।।
भाई, अब हो गया सवेरा।।
उठ उठ आँखें खोल दिखा दे, एक बार हुंकार मचा दे,
उखड़ जाएगा 'माधो' सुनकर, डाकू दल का डेरा।
भाई, अब हो गया सवेरा।।