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भोर होलै / सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर'
Kavita Kosh से
भोर होलै जगो, जगाबोॅ ते।
घोंसला प्रेम के बनाबोॅ तेॅ।
है धरा धर्म के बगीचा मेॅ
गीत गोबिन्द के सुनाबोॅ तेॅ।
खूब फरतै हँसी-खुषी सगरेॅ
नेह के गाछ जों लगाबोॅ तेॅ।
देह के खून सब जरै-तॅ जरै
प्रेम के दीप टा जलाबोॅ तेॅ।
ई तिरंगा सरंग सॅ ऊचो छै
गाण सरहद के जोॅ सुनाबोॅ तेॅ।