भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भोरे भोर / यात्री
Kavita Kosh से
भोर भोर
आएल छी बूलि
भोरे भोर अएल छी धङि
क’ आएल छी अनुभव
पुलकित होइत छइ रोम रोम
स्पर्शक प्रतापेँ कोना कोना
भोर भोर
पैरक दुहू तरबाह ग‘ह ग‘ह द’ने
आएल छी पोबि
माधो आकाशक हेमाल ओस
भोर भोर
आएल छी बूलि
दुबिआही लॉनमेँ