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मंजिल / लालित्य ललित
Kavita Kosh से
तुमने हवा में
एक पत्थर उछाल दिया
और
मैंने पानी में
लहरें अपना रास्ता
बनाने लगीं
नाविक किश्ती चलाने लगे
और
मैंने नाव
आहिस्ता से किनारे पर लगा ली
जहां तुम खड़ी थी ।