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मंत्री के घर में / रघुवीर सहाय
Kavita Kosh से
इतने बड़े-बड़े कमरे थे जिनमें सौ सौ लोग समायें
बार-बार जूते खड़काते वर्दीधारी आवैं जायें
घर के भीतर बैठे गृहमंत्री जी दूध मिठाई खायें
बाहर बैठे हुए सबेरे से मिलनेवाले जमुहायें
मुंशी आया आगे आगे पीछे मंत्री दर्शन दीन्ह
किया किसी को अनदेखा तो लिया किसी को तुरतै चीन्ह ।
कवि के मरणोपरांत प्रकाशित 'एक समय था' नामक कविता-संग्रह में भी संग्रहित