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मछली / बालकृष्ण गर्ग
Kavita Kosh से
डूबी कभी, कभी उछली,
करतब करती है मछली।
खा जाती काई-कचरा,
पानी करे साफ-सुथरा।
[राजस्थान पत्रिका, 16 अक्तूबर 1996]