भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मजदूरी के पैसे हो तुम / विज्ञान व्रत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

और सुनाओ कैसे हो तुम।
अब तक पहले जैसे हो तुम।

अच्‍छा अब ये तो बतलाओ
कैसे अपने जैसे हो तुम।

यार सुनो घबराते क्‍यूं हो
क्‍या कुछ ऐसे वैसे हो तुम।

क्‍या अब अपने साथ नहीं हो
तो फिर जैसे तैसे हो तुम।

ऐशपरस्‍ती। तुमसे। तौबा।
मजूदरी के पैसे हो तुम।