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मत झनकार जोर से / माखनलाल चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
मत झनकार जोर से
स्वर भर से तू तान समझ ले,
नीरस हूँ, तू रस बरसाकर,
अपना गान समझ ले।
फौलादी तारों से कस ले
’बंधन, मुझ पर बस ले,
कभी सिसक ले
कभी मुसक ले
कभी खीझकर हँस ले,
कान खेंच ले,
पर न फेंक,
गोदी से मुझे उठाकर,
कर जालिम
अपनी मनमानी
पर,
’जी’ से लिपटाकर!
मुझ पर उतर
ऊग तारों पर
बोकर,
निज तरुणाई!
पथ पायें
युग की रवि-किरनें
तेरी देख ललाई,
कभी पनपने दे
मानस कुंजों में,
करुण कहानी!
कभी लहरने दे
पंखों-सी,
पलक-पंक्तियाँ, मानी
कभी भैरवी को
मस्तक दल पर
चढ़कर आने दे,
कैसा सखे कसाला, बलि-स्वर-
माला गुँथ जाने दे!