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मत दिखा रोब तू नवाबी का / शोभा कुक्कल

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मत दिखा रोब तू नवाबी का
ये शहर है इक इंक़लाबी का।

शहर भर में है आज कल चर्चा
तेरी सूरत की लाजवाबी का।

गिर पड़े राह में न जाने कब
क्या भरोसा किसी शराबी का।

रच गई है नसों में अब रिश्वत
क्या मुदावा हो इस खराबी का।

हो गया काम सब का सब चौपट
ये नतीजा है सब शताबी का।

हर किसी से तपाक से मिलना
राज है अपनी कामियाबी का।

हार जाने का मत मन तू सोग
मत मना जश्न कामियाबी का।

आओ पूछें कभी बुजुर्गों से
क्या है भेद उनकी कामियाबी का।