भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मदमस्त पवन / राजीव रंजन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बागों में कलियों को वह चूम रहा।
उन्मुक्त पवन गुलशन में यूँ घूम रहा।
जैसे राह में मदिरा पी कोई झूम रहा।
बागों में फूलों का यौवन बन फूल रहा।
कभी पत्तों संग डालियों पर झूल रहा।
लहलहाते खेतों में जा अपने को भूल रहा।
भांग सा हर मन में उमंग घोल रहा।
बहारों में खिले सौदर्यं का घूँघट खोल रहा।
मधुमीत मदन सा प्यार की भाषा बोल रहा।
हिम-सिक्त शिखर पर चढ़ कभी ठंडी आहें भर रहा।
कभी पुष्प-रज उड़ा तितलियों की साँसें गर्म कर रहा।
मदमस्त पवन आज गीत बन हर मन से झर रहा।