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मधुशाला / भाग 22 / हरिवंशराय बच्चन / अमरेन्द्र

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कत्तेॅ मर्म जतैलेॅ जाय छै
घुरी-घुरी आबी हाला,
कत्तेॅ रहस बतैलेॅ जाय छैै
घुरी-घुरी आबी प्याला,
कत्तेॅ अरथ इशाराहै सें
जाय बतैलेॅ छै साकी,
तहियो पीयैवाला लेॅ छै
एक पहेली मधुशाला ।127

जत्तेॅ दिल के गहराई छै
ओत्तै गहरा छै प्याला,
जत्तेॅ मन में मादकता छै
ओत्तै मादक छै हाला,
जत्तेॅ हिरदय के भावुकता
ओत्तै सुन्नर साकी छै,
जत्तेॅ जे छै रसिक, ओकरा
ओत्ते भावै मधुशाला ।128

जे ठोरोॅ केॅ छुऐ, करी दै
मस्त ओकरै ई हाला;
जे हाथोॅ केॅ छुऐ, करी दै,
बेमत ओकरै ई प्याला;
आँख चार होतें ही हमरोॅ
साकी सेंµदीवाना ऊ;
बेमत होय केॅ नाँचै ऊ जे
आबौ हमरोॅ मधुशाला ।129

हर जिह्वा पर पैलोॅ जैतै
हमरोॅ ई मादक हाला,
हर हाथों में रखलोॅ होतै
हमरोॅ साकी रोॅ प्याला,
हर घर में चर्चा अब होतै
हमरोॅ मधु बिकवैया के;
हर ऐंगन में गमक उठैतै
हमरोॅ गमगम मधुशाला ।130

हमरोॅ हाला में पैलेॅ छै
सब अपनोॅ-अपनोॅ हाला,
हमरोॅ प्याला में पैलेॅ छै
सब अपनोॅ-अपनोॅ प्याला,
हमरे साकी में सब्भै नें
अपनोॅ ठो साकी देखै;
जेकरोॅ जेन्होॅ सच, होने ठो
देखलकै वैं मधुशाला ।131

लोर छिकै ई मदिरालय रोॅ,
नै, नै ई मादक हाला;
आँख छिकै ई मदिरालय रोॅ
नै, नै, नै, मधु रोॅ प्याला;
कोय काल रोॅ याद सुखद ई
साकी बनी केॅ नाँचै छै;
नै, नै, कवि रोॅ हृदय-ऐंगनोॅ
ई विरहाकुल मधुशाला ।132