मधुशाला / भाग 23 / हरिवंशराय बच्चन / अमरेन्द्र
कुचली अपनोॅ कत्तेॅ हसरत
हाय बनैलेॅ छी हाला,
खाक करी अरमानो कत्तेॅ
सुनोॅ बनैलेॅ छी प्याला !
पीबी पीयैवाला जैतै
पता नै चलतै केकराहौ,
कत्तेॅ मन रोॅ महल ढहै, तेॅ
खड़ा हुऐ ई मधुशाला ।133
विश्व, विषैलोॅ तोरोॅ जिनगी
में लानै छै जों हाला,
कटियो टा भी मोॅद मतैलोॅ
ई हमरी साकीबाला,
तोरोॅ सुन्नोॅ पल केॅ कुछुवो
जो गुंजित ई कै दै छै,
सुफल समझतै जिनगी अपनोॅ
जग में हमरोॅ मधुशाला ।134
कत्तेॅ नाजोॅ सें पोसलेॅ छी
हम्में ई साकीबाला,
ललित कल्पनै केरोॅ यैनें
सदा उठैनें छै प्याला,
मान-दुलारोॅ सें ही रखियोॅ
ई हमरी सुकुमारी केॅ;
विश्व तोरोॅ हाथोॅ में आबेॅ
सौंपी रहलौं मधुशाला ।135