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मन, कितने पाप किए / राजेन्द्र गौतम

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गीतों में
लिखता है जो पल
वे तूने नहीं जिए
मन, कितने पाप किए

धुन्ध-भरी आँखें
बापू की माँ की
तेरी आँखों में क्या
रोज़ नहीं झाँकी
वे तो बतियाने को आतुर
तू रहता होंठ सिए
मन, कितने पाप किए

लिख-लिख कर फाड़ी जो
छुट्टी की अर्ज़ी
डस्टबिन गवाही है
किसकी ख़ुदगर्ज़ी
तूने इस छप्पर को थे
कितने वचन दिए
मन, कितने पाप किए

इनके संग दीवाली
उनके संग होली
बाट देखते सूखी
घर की रंगोली
घर से दफ़्तर आते-जाते
सब रिश्ते रेत किए
मन, कितने पाप किए