भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मन / वाज़िद हसन काज़ी
Kavita Kosh से
मन
उडै
चौफेर आठूं पौर
किण विध
काबू करूं
पण
निकळ जावै
फेरूं
हाथां सूं
टिकै नीं
अेकण ठौड़
रमै नीं कठैई
जतन करूं
काबू करण रौ
पण नीं हुवै सफल
जतन
अर भटकतौ रैवै
मन।