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मन के पलाश / सरस्वती माथुर
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झर गए सपने आँगन के नीम से
जाग उठे मौसम सपेरों की बीन से
ओढ़ मधुर सुधियों को
अनुरागी छवियों को
खिल उठे जमुहाते
मन के पलाश
मौसमी ज़मीन से
झर गए सपने आँगन के नीम से
जाग उठे मौसम सपेरों की बीन से
उड़ाते हवाओं में एक भीगी शाम
ओढ़ कर चूनरी चाँदनी के नाम
आ गए गुलमोहरी मधुमास
खोलते अनुरक्त पाँखें
गुलमोहरी नीड़ से
झर गए सपने आँगन के नीम से
जाग उठे मौसम सपेरों की बीन से